पथ के साथी

Sunday, August 21, 2016

658



1-ज्योत्स्ना प्रदीप

कृष्ण -कंत

अर्जुन की भाँति
अंग हो उठे शिथिल
जीवन के कुरुक्षेत्र में
स्वजनों को
शत्रुओं में बदलते देख
मेरा हृदय
कर उठा रुदन
पर कोई मधुसूदन
नहीं आया
इस मन का रथ लड़खड़ाया
क्या अंतर्मन में मचे
महाभारत का कोई अंत होगा ?
मेरा भी कोई कृष्ण कंत होगा ?
-0-

2-टूटी कुर्सी

वह भी था कभी
यौवन की कोमल अनुभूतियों का
सुखद स्पर्श
पिया था उसनें भी मय
मंद -मंद
सानंद
पर जबसे
कुछ टेढ़ी लकीरें
मुख पर छानें लगीं
कमर झुक -झुक कर
धरती से बतियाने लगी
कुछ अपनें लोगो नें
अपनें समाज से निकाल दिया
घर की किसी कोठरी में
टूटी कुर्सी की तरह
 डाल दिया !
-0-
1-पंचपर्णा - 3 -सन् 2005 ( संपादिका डॉ. शैल रस्तोगी से साभार)
-0-
2-बेटियाँ -गज़ल
डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर

डॉ पूर्णिमा राय
आज खुद की कमी भाँपती बेटियाँ;
आसमाँ की ज़मीं नापती बेटियाँ।।


दुश्मनों को हराकर सदा खेल में;
मुस्कुराहट से' दिल जीतती बेटियाँ।।


बोझ से ना झुकें उनके कन्धे कभी ;
प्रेम माँ-बाप का चाहती बेटियाँ।।


नाम दुर्गा भवानी का' लें मान से;
ईश की वंदना आरती बेटियाँ।।


सेव्य भावों -सजी दिख रही आत्मा ;
कष्ट- विपदा में' सब जागती बेटियाँ।।


भोर की वो किरण ओस की बूँद हैं;
पूर्णिमा रात में ताकती बेटियाँ।।
-0-

6 comments:

  1. बहुत खूब पूर्णिमा जी ....ज्योत्सना जी बहुत खूब हार्दिक बधाई आप दोनों को

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आ.सुनीता जी..

      Delete
  2. ज्योत्सना जी उम्दा अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  3. ज्योत्स्ना जी... यथार्थ का चित्रण !
    अंतर्मन में छिड़े महाभारत में अक्सर मन शिथिल होकर ढूँढ़ता है कान्हा को, जो आ जाए उसे उबारने ख़ातिर ...मगर कान्हा कहाँ आते हैं !
    टूटी कुर्सी की व्यथा कब समझेंगे अपने ... ईश्वर ही जाने !

    पूर्णिमा जी....
    बहुत सुंदर रचना~ बेटियाँ तो घर का नूर होती हैं !

    दोनों रचनाएँ मन को छू गईं !
    आप दोनों को हार्दिक बधाई!

    ~सादर
    अनिता ललित

    ReplyDelete


  4. भैया जी का हृदय से आभार !!!
    सुनीता जी ,पूर्णिमा जी, कविता जी ,अनीता जी मनोबल बढानें के लिए आपका भी हृदय से आभार !
    पूर्णिमा जी बहुत सुन्दर! बेटियों पर लिखी रचना मन को भीतर तक स्पर्श कर गई !आपको बहुत -बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete
  5. बहुत भाव पूर्ण रचनाएँ ज्योत्स्ना जी ...गहरे दर्द से भरी ' टूटी कुर्सी ' !
    बेटियों का अभिनंदन करती सुंदर रचना पूर्णिमा जी !
    हार्दिक बधाई सखियों !!

    ReplyDelete