पथ के साथी

Friday, February 12, 2016

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अनिता ललित
1
हे माँ! वीणा वादिनी, दो मुझको वरदान
आखर-आखर में ढलूँ, भर दूँ उनमें प्रान
भर दूँ उनमें प्रान, चुनूँ हर पथ के काँटे  
सुमन-सुवासित भाव, व्यथा हर मन की बाँटे
जीवन का उल्लास, मिले इन चरणों में माँ   
रख दो सिर पर हाथ, तृप्त मन कर दो, हे माँ !!
2
अधर-अधर मुस्का दिया, मन पुलकित है आज
ताज बसंती पहनकर, आए हैं ऋतुराज
आए हैं ऋतुराज, धरा भी है हर्षाई
पीली सरसों संग, हुई है आज सगाई
थिरक रहा है गगन, हवा लहराती चूनर
दिल में उठे तरंग, फूल हुए कोमल अधर।।

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10 comments:

  1. अति सुंदर कुंड्लियों हेतु बधाई अनिता जी !

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  2. सुन्दर रचना । बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ ।

    मेरी २००वीं पोस्ट में पधारें-

    "माँ सरस्वती"

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  3. अनिता जी सुंदर कुंडलिया छंद के लिए हार्दिक बधाई।

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  4. सुन्दर वासंती भावों से सजी सार्थक कवितायेँ और सरस्वती वन्दना |शुभकामनाओं सहित,
    सुरेन्द्र वर्मा |

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  5. वागदेबी माँ सरस्वती की वन्दना और ऋतुराज बसंत का सरस शब्दावली में गुणगान करती रचनायें बहुत ही सुंदर है ,बधाई |

    पुष्पा मेहरा

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  6. बहुत सुंदर कुंडलियाँ ललितजी।

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  7. माँ सरस्वती की वन्दना अति सुंदर !हार्दिक बधाईअनिता जी !

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  8. सराहना तथा प्रोत्साहन हेतु आप सभी का हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  9. माँ शारदे की वन्दना और ऋतुराज बसंत का सुन्दर चित्रण ..मन नयन को तृप्त कर गए !

    बहुत-बहुत बधाई अनिता जी !!

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