पथ के साथी

Saturday, February 20, 2016

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1-गा बसंत
-पुष्पा मेहरा

यह क्रम अनंत , यह क्रम अनंत
देखो ! फिर आया है बसंत ,
उजड़े कितने भी वन उपवन
फूलों के यौवन पर प्रहार
कितना भी असहनीय करे काल
जितना भी शेष बचेगा जग में
वह जीते जी सुरभि बिखेरेगा ,
यह क्रम अनंत, यह क्रम अनंत
देखो! फिर आया है बसंत ।
कोयल की तानें सुनने को
फूली अमराई भी क्यों न
पगला जा , मिठ्ठू की तान-
आलाप सुनने की खातिर चाहें
कितने भी कान तरस जाएँ,
तितली- दल रूठे ना आ
निज जीवन की आहुति दे दें,
ठिठुरे भौंरे भी  ना जागें ,
कमलों के मुख का हास सखे !
जल में निज रूप- निहार बुझे
इक सूनापन अपना गीत रचे,
सौन्दर्य अछूता रह जा ,
सर- सरिताओं की धाराएँ
वेग  विहीन हो कसमसाएँ -
और टूट कर बिखर जाएँ
मधुसिक्त कलियाँ निज
मधु आसव होंठों में लिये
सदा को सो जाएँ ,
कितने पट , कितने ही झरोखे
ये बेसुध मानव खोले और बंद करे-
पर जब जब घूमेगा प्रकृति-चक्र
तब तब आगा बसंत।
देखो! आ गया ऋतुराज बसंत
तो मिलकर बैठें,शृंगार रचें, कि
मीठी धूप का आँचल पा,
हल्दी कुमकुम ,सुहाग भाग पा
धरा सदा सुहागन कहला
वन उपवन फिर से सज जाएँ
रूठे भी वापस आ जाएँ
मंगलाचरण से भोर सजे,
 नदियाँ चरणोदक लायें
कामराज के स्वागत को
पाखीदल सारे लौट पड़ें
फूलों से नत वल्लरियाँ
निज आसव भी नित नित ढालें
तितली- भौंरे भी मिलजुलके
विरुदावलियाँ गानें आ जाएँ
यह रूखापन जो उसको
यहाँ इस बार मिला
आगे न कभी मिलने पा
आयें हैं ऋतुराज तो रूठ के
ना जानें पायें ,
देखो ! आया है बसंत
लाया है खुशियाँ अनंत
फिर लौट के आया है बसंत
फिर- फिर आगा बसंत !!
-0-
2-उड़ने की चाह

डॉ सिम्मी भाटिया

छटपटाता  पाखी
बन्द पिंजरे में
उड़ने की है चाह
नही जानता-
निर्मम है दुनिया
जाल फैला
बैठा हर बहेलिया
फिर भी
उड़ने को आतुर,
नदी झरने बहे
फिर भी प्यासा
नर हुआ जीवन
पंख कटे
हो गया घायल
मिलेगी निराशा
असहाय पीड़ा
क्षुब्ध मन
गिनती की साँसें
जीवन का अंत !!
-0-

11 comments:

  1. सुन्दर रचनाएँ! पुष्पा जी, सिम्मी जी शुभकामनायें!

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  2. आदरणीया पुष्पा जी व सिम्मी जी आपकी कविताएँ बहुत अच्छी लगी।

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  4. सुन्दर कविताएँ,पुष्पा जी, सिम्मी जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ।

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  5. Basant or chhtpatta pakhi rachnayen achhi lagi meri hardik shubhkamnayen...

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  6. सुन्दर रचनाएँ! आदरणीया पुष्पा जी व सिम्मी जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ।

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  7. सुन्दर कविताएँ

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  8. बहुत सुंदर रचनाएँ !
    मनमोहक चित्रण बसंत का तथा पंछी की छटपटाहट -अत्यंत भावपूर्ण!!
    पुष्पा जी एवं सिम्मी जी को हार्दिक बधाई !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  9. दोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर !
    पुष्पा जी एवं सिम्मी जी को हार्दिक बधाई !!

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  10. पुष्पा मेहरा जी आपने सृष्टि के आवागमन को कितनी खूबसूरती से 'आएगा बसंत' में प्रस्तुत किया है। सारी सृष्टि प्रकट हो कर विलीन हो जाती है लेकिन बसंत के पुन: पुन: आने का क्रम अटूट है । ....'देखो ! आया है बसंत ।लाया है खुशियाँ अनंत ।' हर पुरानी बातें भुला कर उस का स्वागत करना चाहिये बहुत सुंदर भाव पूर्ण कविता है ।बधाई पुष्पा जी ।
    'उड़ने की चाह' सिम्मी भाटिया जी आप ने भी एक चाह के रूप में दुनियां की निर्ममता का वर्णन किया है बहुत सुन्दर है ।बधाई स्वीकारें ।

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  11. फिर- फिर आएगा बसंत !!
    बहुत सकारात्मक ऊर्जा से भरी कविता...| बहुत बधाई...|

    सिम्मी जी, आपकी कविता बहुत मर्मस्पर्शी है...| उफ़! ये कठोर दुनिया...|

    आप दोनों को बहुत बधाई...|

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