अमित अग्रवाल
1-शहर---
सब दीवारें हैं यहाँ
चलती फिरती
या बस परछाइयाँ,
कोई इंसान नहीं.
ये शहर
पत्थरों का है
या
तिलिस्मात
छलावों का,
यहाँ
भगवान नहीं.
-0-
2-उषा बधवार
1-पानी
जीवन का मक़सद पानी
धरातल में पानी, रसातल में पानी
पानी बिना त्राहिमाम् त्राहिमाम् प्राणी.
पानी ही
कुदरत की नियामत सुहानी
जीवन इस बिन लगता बेमानी.
न उसका रंग न उसका रूप.
मिल जाता जिस में बन जाता उसका
स्वरूप.
कितने ही रूपों में मिलता है
पानी
कभी बनके भाप उड़ जाता
गगन में,
या कभी बनके बूँद वापिस आता धरा पर
बर्फीले पहाड़ो पर चाँदी की चमक जैसे
जन्नत का तोफा ,रवानी
जीवन इस बिन लगता बेमानी
लाखों पदार्थ बिन इसके फीके
गंगा और जमुना का अमृत -सा पानी
जीवो की मुक्ति का साधन बना यह
कहीं निर्मल कही गँदला
कहीं नीले आकाश जैसा
सुन्दर
हर प्यासे की मंज़िल है
पानी
जीवन इस बिन लगता बेमानी
-0-
2-ज़िन्दगी से मुलाकात
वक़्त की दौड़ में भागी ज़िन्दगी को पहचाना नहीं
कटती गई इसी कशमकश में
हम खुद में ज़िन्दगी को तलाशते रहे .
इसलिए इसको पहचाना नहीं.
यूँ तो
ख्वाहिशों और ख्वाबो का दरिया है.
तमन्नाओं में डूब हर कोई गोते लगाता हैं
क्या इसकी परिभाषा हैं बस जीने की अभिलाषा हैं
सँवर जाती तो दुल्हन- सी लगती
हैं
बिखर जाती तो बनती तमाशा हैं.
बन्ध जाती हैं जब मोह पाश में
फिर होड़ लगे सब कुछ पाने की
दुःख दर्द न हो पीड़ाःन हो उल्लास ख़ुशी से पूर्ण हो
थोड़े से मन
भरता ही नहीं
यह चाहत है सारे ज़माने की.
ज़िन्दगी जीने का जनून न बन जाए
जियो ऐसी शान से कि सदियाँ
बीत जाएँ भुलाने में
मिसाल बन जाये ज़माने में
मिलती नहीं बार -बार हमारे
चाहने से
खुश रहो खुश रहने दो न तोड़ो दिल किसी का
प्यार से सब मिलके गुन ग़ुनाओ
एक नगमा बन जाये ज़माने में
यूँ तो इक किताब हैं ज़िन्दगी
जिसके पन्नें पलट कर पीछे की और जाते रहे.
वक़्त के पहियों पर पल पल नया रास्ता बनाती ज़िन्दगी
तुम बिन अर्थहीन अस्तित्व है हमारा अये
ज़िन्दगी !
-0-
आदरणीय काम्बोज सर,
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
उषा जी की रचनाएँ अच्छी लगीं।
ReplyDeleteसुंदर कविताएँ !
ReplyDeleteबहुत बधाई आपको अमित जी एवं उषा जी !
~सादर
अनिता ललित
amit lji evam usha ji ko badhai sundar kavitayen likhne ke liye !
ReplyDeleteअमित जी एवं उषा जी को बहुत बधाई!!!
ReplyDeleteअमित जी और उषा जी, शहर , पानी और ज़िन्दगी से मुलाकात कवितायेँ मन भवन लगीं | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteअमित अग्रवाल
ReplyDelete1-शहर की सही हकीकत बयाँ कर दी .
उषा जी !वकाई पानी सामयिक सुंदर रचना . जल से जीवन है .
वक़्त के पहियों पर पल पल नया रास्ता बनाती ज़िन्दगी
तुम बिन अर्थहीन अस्तित्व है हमारा अये ज़िन्दगी !
सुंदर पंक्तियाँ
बधाई दोनों को
अमित जी एवं उषा जी भावपूर्ण सृजन हेतु बधाई!!
ReplyDeleteअमित जी एवं उषा जी भावपूर्ण सृजन हेतु बधाई!!
ReplyDeleteसुन्दर कविताएँ......अमित जी, ऊषा जी बधाई।
ReplyDeletebahut sunder kavitayen amit ji va usha ji ko badhai .
ReplyDeletepushpa mehra
सब दीवारें हैं यहाँ
ReplyDeleteचलती फिरती
या बस परछाइयाँ,
कोई इंसान नहीं.
badi gahan soch hai is rachna men amit ji sahi kaha chalava hi hai bas har taraf kahi bhi jara sach mil jaye to jeene ka maksad mil jata hai..aapko bahut sari shubhkamnayen or aneko badhai..
usha ji aapki rachnayen bhi bahut gahan hain aapko bhi hardik badhai...
Bhawna ji I'm grateful to you for your appreciation and encouragement!
ReplyDeleteमेरी कविता पसन्द करने के लिए सब मित्रों को धन्यवाद!
ReplyDelete"शहर" ..शहरी ज़िंदगी की हकीकत कहती बहुत सुन्दर रचना अमित जी ...बहुत-बहुत बधाई !
ReplyDelete"पानी" और "ज़िंदगी" को खूबसूरती से परिभाषित किया उषा जी ..हार्दिक बधाई !!
अमित जी आपकी रचना मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामना
उषा जी आपकी रचनायें सुंदर
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामना
उषा जी सुंदर रचनायें आपकी
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामना
बहुत सुन्दर और सार्थक रचनाएँ...हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteमेरी कविताओ की सराहना करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteअच्छा लगा आप सब को पसंद आई.
मेरे शुभ चिंतक
धन्यवाद
उषा बधवार
अमित जी एवं उषा जी को बहुत बहुत बधाई!!
ReplyDeleteअमित जी यूँ तो पूरी रचना के बहुत सुन्दर भाव हैं लेकिन यह पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर लगीं
ब दीवारें हैं यहाँ
चलती फिरती
या बस परछाइयाँ,
कोई इंसान नहीं.
ये शहर पत्थरों का है
बहुत सुन्दर बात कही उषा जी अापने .... पानी के बिना जीवन बेमानी है
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जियो ऐसी शान से कि सदियाँ बीत जाएँ भुलाने में
मिसाल बन जाये ज़माने में
-0-
मंजु मिश्रा,