पथ के साथी

Thursday, October 30, 2014

पौधा



डॉ ०सुधेश
 
        मैं सड़क के बीच का पौधा
         किस ने लगाया
         किस अभागे समय,
         आने वालों जाने वालों को
         बस देखता हूँ
         जगत भी आवागमन का सिलसिला
         कारों तिपहिया वाहनों ट्रकों
         से निकलते ज़़हर में साँस लेते
          मेरे पत्ते काले पड़ गए हैं
          खिली दो चार कलियों ने
          फूल बनने से किया इंकार
           फिर कहाँ फूलों की हँसी
          कहाँ मादक गन्ध
          मेरी सुरभि का कोष
            लूटा सभ्यता की दौड़ ने
           जैसे दिन दहाड़े लुट गया
           सड़क का आदमी
           सड़क के बीचों बीच ।
मैं अगर खिलता
फैले कार्बन को सोख
क्सीजन लुटाता
पर्यावरण सौन्दर्य में
कुछ वृद्धि करता
पर मैं अभागा
सड़क के बीचोंबीच
केवल मूक दर्शक
बन गया हूँ
जैसे सड़क का आदमी ।
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9 comments:

  1. पर्यावरण पर बात करती एक सुन्दर एवं सार्थक रचना !

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  2. मार्मिक सत्य को प्रगट करती कविता !

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  3. बहुत अछा प्रस्तुतीकरण !एक प्रगतिवादी कविता !

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  4. कठोर एवं दुःखद सत्य को बयान करती कविता...

    ~सादर
    अनिता ललित

    सादर
    अनिता ललित

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  5. Pryavarn par bahut khub likha hai meri hardik badhai...

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  6. dr. sudhesh ji ko saadar naman...sunder v saarthak rachna ke liye bahut saari shubhkaamnaye .

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  7. कटु यथार्थ कहती प्रभावी रचना !

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  8. बहुत खुबसूरत सभी ....चोरी तो आम बात हो गई है भैया ...सादर नमस्ते भैया
    पर उन्होंने तू मांफी मांग ली थी न

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  9. एक कटु सत्य...हार्दिक बधाई इस रचना के लिए...

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