पथ के साथी

Thursday, February 27, 2014

वह दौर यह दौर

मंजु मिश्रा

(माँ-बाप की तरफ से कुछ शब्द अपने बड़े हो गए बच्चों के लिए आजकल घर-घर में ये फिकरे आम हो गए हैं- "you don't know mom/dad  or you won't understand it"- बस उसी अनुभव से उपजी यह कविता )
हमें नादाँ समझते हो, और ये भूल बैठे हो
हमीं ने उँगलियाँ थामीं तो तुमने चलना सीखा है
                   **
न होते हम अगर उस दौर में तो तुम जरा सोचो
गिरते और सँभलते कितनी चोटें खा गए होते
                   **
मगर ये फर्ज था माँ-बाप का, कर्जा नहीं तुम पर
न रखना बोझ दिल पर और चुकाने की न सोचो तुम
                   **
जहाँ भी तुम रहो खुशहाल बस इतनी- सी ख्वाहिश है
 हमारा क्या है अपनी जिंदगी तो जी चुके हैं हम
                   **



13 comments:

  1. मन की जानी, पीर पुरानी

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  2. यथार्थ कहती , मन को छू लेने वाली पंक्तियाँ ...बधाई मंजु जी |

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  3. dagar-dagar chalate the kabhi, sambhala tha jinhone un dagon ko,. aj vakht ki garmi ne jhulasa diya vo pyara pyar. ....bhulate hue shubh kamnaon ki sarita to svabhavik hai. inhin shabdon ke sath is sunder abhivyakti ke liye apako manju ji bahut- badhai
    pushpamehra.

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  4. कटु सत्य को उजागर करतीमर्मस्पर्शी रचना......शुभ कामनाएं

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  5. सुन्दर चित्रण है आज के यथार्थ का...

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  6. vicharon ki takkar se janmi bhavon ki chingari ne bahut sunder bhav- roop racha hai.bmanju ji apko badhai.
    pushpa mehra.

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  7. yatarth ka chitran karti ...bahut sunder kavita manju ji

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  8. हमें नादाँ समझते हो, और ये भूल बैठे हो
    हमीं ने उँगलियाँ थामीं तो तुमने चलना सीखा है

    सच कहा है आदरणीया मंजू जी ने ...हर बात पे आँचल खीचकर जिद करने वाला बच्चा ... बड़ा होते ही जब हाथ झटक दे तो ...

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  9. न होते हम अगर उस दौर में तो तुम जरा सोचो
    गिरते और सँभलते कितनी चोटें खा गए होते--सुन्दर भाव प्रवण रचना .मंजुल

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  10. आप सबने रचना को पसंद किया, इतनी सुन्दर सुन्दर प्रतिक्रियाएं दीं, सभी को हार्दिक धन्यवाद ! कभी समय मिले तो ब्लॉग पर भी आयें, आपके सुझाव एवं प्रतिक्रिया पा कर अच्छा लगेगा।

    http://manukavya.wordpress.com

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  11. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति है मंजू जी !
    शायद हर माँ-पिता को इस दौर से गुज़रना पड़ता है कभी न कभी ! मगर इस दौर की राह अगर फूलों सी मुलायम हो तो तक़लीफ़ नहीं होती ! सीखने की उम्र कभी नहीं ढलती... हाँ सिखाने वाले अगर सलीक़े से सिखाएँ तो ! चीज़ें वही होतीं हैं उनके रूप बदल जाते हैं ...उसमें किसी को ढालना या ढलना दोनों ही ज़रा मुश्किल होता है ! दो पीढ़ियों में अगर आपसी समझ और प्रेम हो तो राह आसान हो जाती है वरना तो तक़रार निश्चित ही है !
    इस ख़ूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई !!! :-)

    ~सादर
    अनिता ललित

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  12. ये शायद हर माँ-बाप के दिल की आवाज़ है...| बच्चे कई बार ये नहीं समझ पाते कि जिन माता पिटा को वो अज्ञानी समझने लगे है, दुनियादारी का ज्ञान उन्ही से पाया है...| इसके अलावा एक-न-एक दिन जब वे खुद माता-पिटा बनेगे तो उनको भी अपने बच्चो से यही सुनने को मिलेगा...| दिल छूने वाली पंक्तियाँ...| बधाई...|

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