पथ के साथी

Saturday, November 2, 2013

मिटें सब सन्ताप

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
सुमन खिले
दीपों के घर-घर
उजियारे के
होश उड़े पल में
घोर अँधियारे के ।
2
ज्योति - धारा में
डूब-डूब बहना
खुश रहना
मिटें सब सन्ताप

रोम-रोम पुलके।
-0-

2 comments:

  1. बहुत उजले ....सुन्दर भाव भरे ताँका ...बहुत बधाई ...शुभ कामनाएं आपको !
    सादर !

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