पथ के साथी

Tuesday, January 8, 2013

सर्दी की धूप


रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
जले अलाव
फ़रार  हुई धूप
काँपती छाँव ।
2
पकती चाय
बिखरती खुशबू
लहके आँच ।
3
रात है सोई
ओढ़े  कोहरे -बुनी
गरम लोई ।
4
ताल में तारे
लगाकर  डुबकी
सिहरे-काँपें ।
5
धूप बिटिया
खेले आँख मिचौली
हाथ न आए ।
6
रात गुज़ारें
ये बेघर बेचारे
नभ के नीचे
7
सर्दी की धूप
गोदी में आ बैठी
नन्हे शिशु-सी ।
8
पल में उड़ी
चंचल तितली-सी
फूलों को चूम ।
-0-

4 comments:

  1. बहुत सुंदर हाईकु भाई साहब !

    'सर्दी की धूप
    शर्मा कर झाँकती...
    छिप-छिप के....' :)

    ~सादर

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  2. गुनगुने से भाव बिखेरती कविता..

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  3. मन को मोह लेने वाले और धूप के विविध रूप दिखाते सुन्दर हाइकु !
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. रात है सोई
    ओढ़े कोहरे -बुनी
    गरम लोई ।

    पकती चाय
    बिखरती खुशबू
    लहके आँच ।

    Naye bhaav mile in haikuon men bahut achchha laga padhkar...aanch ka lahkna bahut bhaaya...bahut2 badhai...

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