आज की विविधा में डॉ ज्योत्स्ना शर्मा के तीन मुक्तक और एक कुण्डलिया
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा ( विविधा)
1
श्रेया श्रुति |
यूँ छीन नहीं लेना ,ये राग तुम्हारे हैं ।
दिल की लगी कान्हा ,कैसे नहीं जान सके;
हार के हम जीते ,वो जीत के हारे हैं ।।
2
किसी से जीतना सीखा ...किसी से हारना सीखा ,
किसी से ज़िन्दगानी भी वतन पर वारना सीखा ।
मेरे गीत और वंदन,समर्पित आज बस उनको ;
जिनसे फूल -काँटों को,संग स्वीकारना सीखा ।।
किसी से ज़िन्दगानी भी वतन पर वारना सीखा ।
मेरे गीत और वंदन,समर्पित आज बस उनको ;
जिनसे फूल -काँटों को,संग स्वीकारना सीखा ।।
3
रहा चाँद तनहा ,बहुत थे सितारे ,
ज़माने से कह दो,हमें ना पुकारे ।
कुछ भी न बाक़ी बस इक आरज़ू है ;
अब तो कहें कान्हा-'तुम हो हमारे ।'
ज़माने से कह दो,हमें ना पुकारे ।
कुछ भी न बाक़ी बस इक आरज़ू है ;
अब तो कहें कान्हा-'तुम हो हमारे ।'
4
बाँचो पाती नेह की ,नयना मन के खोल ,
वाणी का वरदान हैं ,बस दो मीठे बोल ।
बस दो मीठे बोल ,बडी़ अदभुत है माया ,
भले कठिन हो काज ,सरल ही हमने पाया ।
समझाती सब सार ,साँस यह आती जाती ,
क्या रहना मगरूर ,नेह की बाँचो पाती । ।
वाणी का वरदान हैं ,बस दो मीठे बोल ।
बस दो मीठे बोल ,बडी़ अदभुत है माया ,
भले कठिन हो काज ,सरल ही हमने पाया ।
समझाती सब सार ,साँस यह आती जाती ,
क्या रहना मगरूर ,नेह की बाँचो पाती । ।
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अत्यंत भावपूर्ण और सरस कुण्डलिया ! बधाई ज्योत्सना जी !
ReplyDeleteपूणे से डॉ क्रान्तिकुमार ( केन्द्रीय विद्यालय की पूर्व प्राचार्या) की टिप्पणी- सहज साहित्य की रचनाएं भी उत्कृष्ट भावाभिव्यती की पराकाष्ठा है.
ReplyDeleteबधाइयाँ!
मनभावन...सहज मन से रची गई इन सहज पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई...।
ReplyDeletechauthi Kundali behtar hai, badhai.
ReplyDeleteकिसी से जीतना सीखा ...किसी से हारना सीखा ,
ReplyDeleteकिसी से ज़िन्दगानी भी वतन पर वारना सीखा ।
Baavpurn Abhivyakti..jindgi ke utaar chadhaav ko bakhubi nibhaaya hai...
भावपूर्ण रसप्रद रचना...ज्योत्स्ना जी बधाई।
ReplyDeleteकृष्णा वर्मा
बहुत भावपूर्ण और सुन्दर रचना ...!!
ReplyDeleteshubhkamnayen.
जिनसे फूल -काँटों को,संग स्वीकारना सीखा ।।
ReplyDeleteyahi sikh jaye insan to jeevan sukhmy ho jaye
bahut bahut badhai
rachana
सभी रचनाएँ अद्भुत हैं. सीख देती हुई संदेशप्रद...
ReplyDeleteकिसी से जीतना सीखा ...किसी से हारना सीखा ,
किसी से ज़िन्दगानी भी वतन पर वारना सीखा ।
मेरे गीत और वंदन,समर्पित आज बस उनको ;
जिनसे फूल -काँटों को,संग स्वीकारना सीखा ।।
बहुत शुभकामनाएँ.
aa Sushila ji ,डॉ क्रान्तिकुमार ji ,कही अनकही,बलराम अग्रवाल जी,Dr.Bhawna जी,कृष्णा वर्मा जी,Anupama Tripathi जी,Rachana जी एवम डॉ. जेन्नी शबनम जी ...उत्साह वर्धक कमेन्ट्स के साथ आपकी उपस्थिति के लिये हृदय से आभारी हूँ...स्नेह बनाये रखियेगा...सादर ..ज्योत्स्ना
ReplyDelete'सहज साहित्य' में स्थान देने के लिये आ भैया जी के प्रति मेरा सादर नमन ...अभार ...ज्योत्स्ना
ReplyDeleteभावपूर्ण रचनाएँ हैं.
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ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाये हैं पहले दो मुक्तक मन को छू गए
बधाई
सादर,
अमिता कौंडल
Rachna me ras hai.
ReplyDeletebahut pyara geet...
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