पथ के साथी

Saturday, July 28, 2012

पनहारिन ( त्रिवेणियाँ)


डॉ  स्वामी श्यामानन्द सरस्वती
( उपर्युक्त सभी त्रिवेणियों में  13-13 मात्राएँ हैं,अन्त में 2-1-2 मात्राएँ हैं। तुक किन्हीं भी दो पंक्तियों का मिल सकता है । स्वामी जी  26 नवम्बर को 92 वर्ष के हो जाएँगे । आज भी काव्य साधना में लीन हैं । ये त्रिवेणियाँ इनके सद्य प्रकाशित संग्रह-‘मैं कितने जीवन जिया’ से ली गई हैं। )

1
पीपल के पत्ते हरे
ललचा-ललचाकर तकें
पनहारिन जब जल भरे  ।



2
पनहारिन की साधना
पानी लाना है उसे
सहकर भी हर यातना ।
3
गगरी ले मीलों चले
कभी न पनहारिन थके
पनघट उसका पथ तके ।
4
पनघट के सिल पर जहाँ
पनहारिन के पग पड़ें
पीपल के पत्ते झड़ें



5
लौट चली वह गाँव को
रोक सकी दूरी कहाँ
पनहारिन के पाँव को ।
-0-

Friday, July 27, 2012

कट गए जंगल ( सेदोका)



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तपती शिला
निर्वसन पहाड़
कट गए जंगल
न जाने कहाँ
दुबकी जलधारा
खग-मृग भटके ।
2
झीलें है सूखी
मिला दाना न पानी
चिड़िया  है भटकी
आँखें हैं नम
लुट गया आँगन
साँसें भी हैं  अटकी ।
3
घाटी भिगोते
रहे घन जितने
वे परदेस गए
रूठ गए वे
निर्मोही प्रीतम -से
हुए कहीं ओझल ।

4
छाती चूर की
चट्टानों की  भी ऐसे
पीड़ा दहल गई ।
विलाप करे
दर-दर जा छाया
गोद हो गई सूनी ।
-0-

Friday, July 20, 2012

तेरा दु:ख




रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तेरा दु:ख मुझे  तो अपने -सा लगे
तेरा मिलना किसी सपने-सा लगे ।
2
               जीवन में सबने ही ,कुछ सपने पाले हैं ।                                   कितने टूटे या बचे , रब के हवाले हैं ॥

Thursday, July 5, 2012

इक जीवन के नाम पर



 डॉ०स्वामी श्यामानन्द सरस्वती
1
जाने मेरा ही जिया ।
इक जीवन के नाम पर
मैं कितने जीवन जिया !
2
कण भर उनसे ॠण लिया
इसे चुकाने के लिए
मैं कितने जीवन जिया !
3
बोल आपके इस तरह
शुद्ध करे है फिटकरी
दूषित जल को जिस तरह ।
-0-
हाइकु
1
मारके ईंट
पूछ रहे हैं लोग-
‘’ लगी तो नहीं?’’
2
तोड़के दिल
कहती है दुनिया-
‘’अब मुस्करा !’’
3
विषैली दृष्टि
पेड़ पर क्या पड़ी
सूख ही गया ।
-0-
ताँका
उसकी पीड़ा
से कम  नहीं
उसकी पीड़ा
शब्दों में जब ढली
शब्द जलने लगे ।
-0-

Tuesday, July 3, 2012

कुछ फूल -कुछ शूल



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बहुत असर अपनों की  दुआओं में होता
ज्यों  खुशबू का झोंका हवाओं में होता  । ।
2
पहाड़ों से टकराकर सदा जो  पार जाता है  ।
अपनों से वह मुसाफ़िर सब  जंग  हार जाता है  । ।
3
मुझको अपनों के बीच मिली बेगानी दुनिया ।
जबसे बेगानों में आया ,अपने बहुत मिले । ।
-0-