पथ के साथी

Friday, June 1, 2012

खुशबू है आँगन की (माहिया)


 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
मिलने की मज़बूरी
पास बहुत मन के
फिर कैसी है दूरी
2
बेटी धड़कन मन की
दीपक मन्दिर का
खुशबू है आँगन की
3
आँसू सब पी लेंगे
जो दु:ख तेरे हैं
उनको ले जी लेंगे
4
मन की तुम मूरत हो
जितने रूप मिले
उनकी तुम सूरत हो

12 comments:

  1. आँगन की यह खुशबू हर घर में बनी रहे..

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  2. बहुत भावपूर्ण रचनाएँ

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  3. वाह! बहुत सुंदर...

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  4. आँसू सब पी लेंगे
    जो दु:ख तेरे हैं
    उनको ले जी लेंगे
    पावन संकल्प!
    सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. मिलने की मज़बूरी
    पास बहुत मन के
    फिर कैसी है दूरी

    bahut sundar bhaav...

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  6. बहुत ही भावपूर्ण और खूबसूरत माहिया! पावन भाव और सुंदर अभिव्यक्‍ति!

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  7. बहुत बहुत सुन्दर.........................

    सादर.

    अनु

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  8. एक से बढ़कर एक माहिया !
    मगर ये तो सीधा दिल में उतर गया !

    आँसू सब पी लेंगे
    जो दु:ख तेरे हैं
    उनको ले जी लेंगे

    बहुत बधाई !

    हरदीप

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  9. एक से बढ़कर एक माहिया !
    मगर ये तो सीधा दिल में उतर गया !
    बहुत बधाई !

    हरदीप

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  10. ज्योत्स्ना शर्मा10 July, 2012 11:50

    सुंदर भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ....
    बेटी धड़कन मन की
    दीपक मन्दिर का
    खुशबू है आँगन की ...बहुत प्यारा लगा....ज्योत्स्ना

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  11. एक अनमोल किताब की तरह है आपका ब्लॉग. सार्थक प्रयास.

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