पथ के साथी

Tuesday, March 24, 2009

मुस्कान तुम्हारी


[आगे बढ़ो तुम पार अँधेरे के ।
दो क़दम दूर हैं द्वार सवेरे के॥]

मुस्कान तुम्हारीपीछे तो केवल छाया है
यही तुम्हारा सरमाया है ।

तुम अपनों को ढूँढ़ रहे हो
कोई साथ नहीं आया है ।

देखी है मुस्कान तुम्हारी
सब कुछ आँसू से पाया है ।

जिसको तुमने गीत कहा था
चुपके रो-रोकर गाया है ।

तुम भी बाज नहीं आते हो
जी भरके धोखा खाया है ।

आशीषों की वर्षा करके
केवल ज़हर तुम्हें भाया है

अपनों का तो सपना पाला
गैरों ने ही अपनाया है ।

-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
19 मार्च 2009

हमारे संस्कार ( एक घरेलू महिला की डायरी)



हमारे संस्कार ( एक घरेलू महिला की डायरी)


सविता यशपाल



(1) माता पिता के विचार



(2)अच्छे विचार



(3)मन को वश में करना सीखें



(4)चेहेरे पर हँसीखुशी रखें



(5) अपने विचारों को सशक्त बनाएँ



(6) हमेशा तनावमुक्त रहिए



(7) मातापिता को भूलना नही चाहिए






1-माता पिता के विचार



मातापिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देते है। बच्चा जैसा देखता है उसके मन में वैसे ही चित्र अंकित हो जाते है। बच्चे ईश्वर का रूप होते है अच्छे विचार वाले मातापिता भी पिछले जन्म के कर्मो से मिलते है क्यों कुछ अब के कर्म करने से मिलते है दो को मिला कर योग्य बनता है। अच्छे संस्कार वाले मातापिता बच्चों को मिलते है यही ईश्वर की माया है। मातापिता चाहते है कि हमारे बच्चे सुभाषचन्द्र बोस और श्रवण कुमार जैसे महापुरुष हो। विनम्रता, मीठी वाणी, ईमानदारी, सहनशीलता सबके प्रति सद्भावना और स्व स्वीकृत अनुशासन ही मनुष्य जीवन को गौरवशाली बनाता है। आप यह गौरव पा सकें तो आपके जीवन वाटिका भी हरीभरी एवं सुव्यवस्थित हो जायेगी।


2-अच्छे विचार


हमारे विचार हमारे जीवन पर प्रभाव डालते है। यह विचार मन में कैदी बनकर तो नही रह सकते यह तो चलतीफिरती माया है। जो कभी एक जगह पर नही टिक पाती


इन विचारों के दो रूप है:-


1-दुख 2-सुख


आपके विचारों का प्रभाव आपकी बोल चाल पर भी पडता है। आप जो कुछ भी बोलते है, उसे अपनी इच्छा से नही विचारों की इच्छा से बोलते है। सद् विचार ही आपकी इच्छाओं पर अपना प्रभाव डालते हैं। आपकी बोल चाल से ही आपकी बुद्वि का अन्दाजा लगाया जा सकता है। आपके विचार से यह भी पता चलना है, कि आप शक्तिमान् हो अथवा दुर्बल । आप कमजोर दिल के है। या बहादुर दिल के बुरा आदमी जिसके विचार गन्दे हो उससे न जाने कितने लोगों के विचार गन्दें होते है, भले ही वह अपने अपने मुँह से कुछ न बोले किन्तु उनकी आँखों से हमे उसके विचारों का पता चल जाएगा। उसके चेहरे पर छाए हुए बुराई की छाया हमें साफ नजर आएगी । हमारा मन अन्दर से अपने आप बोल उठेगा-यह आदमी पापी है।धोखे बाज है।झूठा है।


यदि हमारे विचार सुविकसित है तो हमारी जबान पर मिठास होगी। यदि हमारा मन शांत हो तो एक नयी शक्ति पैदा होगी इसमें हमें एक नया ज्ञान मिलता, नयी सोच मिलती है। इसलिए हमें अपने विचारों को सदा स्वच्छ, उच्च, पवित्र, महान रखना चाहिए। उन्हे हर बुरी वस्तु से दूर रखें,हर बुराई से दूर रखें। कुछ लोग ऐसे विचारों का ही प्रचार करते रहते है, वे जहाँ भी जाते है, आंतक, असफलता और निराशा के विचारों को अपने साथ ले जाते है। यही विचार दूसरे सुखी लोगों पर लाद कर उन्हें भी दु:खी करने का प्रयास करते है। ऐसे लोगों को अपने पास मत आने दीजिए। यदि यह भूल कर आ ही जाये तो इनके पास से स्वयं उठकर चले जाना ही भलाई है। भला करो, तो मन को शान्ति मिलेगी, शांत मन तो ईश्वर को पा लेता है।


अच्छा कर्म करने से अच्छाई मिलेगी, लोग आपका आदर करेगे। सबसे प्यार करोगे तो सब प्यार देगे। सबकी इज्जत करोगे तो सब इज्जत करेगें। इससे आप सफल इन्सान बन जायेगे।


आपके घर में सुख होगा


आपकी संन्तान सुखी होगी


अपने ऊँचे आदर्श विचारों से आप संसार का मन जीत सकते है।



3-मन को वश में करना सीखें



इंसान का मन चंचल है तथा प्रत्येक समय भटकता रहता है। इस बात को सभी लोग जानते है अगर आप इसें वश में नही करते तो अवश्य ही धोखा खाएँगे। यदि आप में आत्मविश्वास है, यदि आपको अपनी बुद्वि पर पूरा भरोसा है तो ऐसे संकट के समय वही बुद्वि आपके अवश्य काम आयेगी शक्तिशाली जो नही होता जो मुसीबतों के समय ही अपनी शक्ति दिखाता है बल्कि वह है हालात के अनुसार ही कार्ययोग्यता तथा सफलता की क्षमता को सबके सामने प्रकट करके दिखाए, दिन तो आतेजाते है। परन्तु हमारा जीवन हमें फिर कहाँ मिलेगा जो कि चीज नाशवान है। उसकी चिन्ता क्यों? हमें यह सोचना और मानना चाहिए। आओं आज मौज उडाए, इस विश्व के सम्पूर्ण सुख हमारे है, हमारे चारों तरफ स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन फलफूल एवं न जाने क्या कुछ पड़ा है। आज के दिन हम अच्छे से अच्छा खाना खाएँगे, अच्छे वस्त्र पहनेगे, मौज उडाये, मस्ती मारे, झूमे, नाचे, गायें अपने जीवन को सुखी बनायें, बस इस तरह की बातों से आपका यह दिन सुखी दिन होगा। आप अवश्य ही अपने जीवन को सुखी बनाने की कल्पना करें। खुशी में अच्छा काम करता है। उठिए, कोई ऐसा काम कर डालिए जो आपकी चिन्ताओं को मिटा दे। इस चिन्ता को हमेशा के लिए अपने मन से बाहर निकाल किसी ऐसे स्थान पर फेंक दीजिए जहाँ से मुडकर यह आप के पास न आ सके, अगर आप वास्तव में ही अपनी इन चिन्ताओं से छुटकारा पाना चाहते है:


(1) क्रोध


(2) चिन्ता


(3) भय


(4) चिड़चिड़ापन


(5) निराशा


(6) एक दूसरे को देखकर जलना


(7) मन की डाँवाडोल हालत(मन की बिगडी हालत)


इन सातों शत्रुओं को अपने पास न आने दें, यही सब आपके सुख को नष्ट करने वाले है। यही आपकी प्रगति के मार्ग की बाधाएँ हैं। यही सब आपकी चिन्ता के सागर में डुबोकर आपके शरीर में विषैले पदार्थ भर देते है।


भाग्य को बनाने के लिए भी साहस की आवश्यकता पड़ती है ईश्वर ने तो यह आपके भाग्य में लिख दिया कि आपको दो समय की रोटी मिलेगी, आप उस रोटी की खोज करें, उसे पाने के लिए मेहनत करें, आटा गूँथे, चूल्हा जलायें, सब्जी बनायें, फिर रोटी खायें।


भगवान ने यदि यह सब कुछ भाग्य में लिख दिया है तो आप उसे पाने के लिए परिश्रम तो करेंगे ही। इन सम्पूर्ण कार्यो के लिए आपको अपने भीतर एक शक्तिशाली इच्छा शक्ति को जन्म देना होगा तथा साथ ही दृढ़ निश्चय करके गुस्सा, चिडचिडापन, दूसरों को देखकर, जलन, निराश, चिन्ता को अपने शत्रु समझकर जीवन से दूर कर दीजिए, उनका अन्तिम संस्कार कर दीजिए ताकि आप अपने सामान्य कार्यो को आराम पूरा कर सकें। जो लोग दूसरों को देखकर नही जलते, वही अपने कार्यो में सफल होते है। इसे कहते हैं सच्ची लगन सच्ची लगन से तो आदमी प्रभु को पा सकता है। तो फिर आप की मनोकामना पूरी हो सकती है आप अपनी इच्छा शक्ति आत्मविश्वास और लगन को एक साथ जोड़कर चलिए तो फिर देखिये आप कैसे महान बनते है। आपको सुख प्राप्त होगें दु:खों के समय अपने आप को सुधार कर अपने में उनका मुकाबला करने की शक्ति तथा योग्यता पैदा करना यही अच्छे गुण है। इससे ही आप सफल प्राणी माने जाएँगे। यही मनोवृत्ति आपको आपके खोए हुए सुख वापस ला देगी, आप सुखी होंगे। आपका परिवार सुखी होगा। मानव का स्वभाव होता है कि वह अपनी गलतियों और कमजोरियों को छुपाता है वह सदा दूसरों के सामने सिद्व करने की कोशिश करता है वह जो कुछ है दूसरा नही, यह भावना उसमें अहंभाव पैदा करती है। अहंकार को जन्म देती है। उसके कार्य उसको सफलता का आकलन तो खुद व खुद सामने आताजाता है। उसकी दिन प्रतिदिन की प्रगति खुद ही लोगों के सामने आती चली जाती है। सि‍र्फ़ अंहकार में भरकर अपने को श्रेष्ट साबित करने की चेष्टा करने वाला कभी भी सफल सिद्व नही होता। विजय की ओर बढ़ना तो सच्चे मन से अपनी योग्यता और क्षमता का आकलन करना चाहिए। अंहकार से दूर रहकर विनयशील बनिए । सफलता और विजय के द्वार आप ही आप खुलते चलें जाएँगे।