पथ के साथी

Tuesday, November 11, 2008

साहब का क्लर्क


-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

फ़ाइलों को उलट-पलटकर
लक्ष्यबेध करता हूँ,
कुछ कागज़ चुपचाप
साहब के आगे धरता हूँ।
रहता हूँ मस्त, दिखता हूँ व्यस्त
काम न छटांक करता हूँ।
बात करता हूँ हँसकर
 दूसरों के दिल में बसकर,
रोज़ खाली ज़ेब भरता हूँ ।
दस बार मुफ़्त की
चाय पीता हूँ
हूँ तो क्लर्क लेकिन
साहब की ज़िन्दगी जीता हूँ।
भगवान से डरता हूँ
सुबह उठकर पूजा करता हूँ,
दिल और दिमाग से बिल्कुल रीता हूँ ।

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया. मजा आया. बधाई.

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  2. तो क्लर्क लेकिन

    साहब की ज़िन्दगी जीता हूँ।

    भगवान से डरता हूँ

    सुबह उठकर पूजा करता हूँ,

    दिल और दिमाग से बिल्कुल रीता हूँ ।
    " wah, great thought and imaginary"

    Regards

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  3. गजब का लिखा है सर!

    सादर

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