पथ के साथी

Friday, March 7, 2008

संस्कार


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
साहब के बेटे और कुत्ते में विवाद हो गया।
साहब का बेटा कहे जा रहा था–''यहाँ बंगले में रहकर तुझे चोंचले सूझते हैं। और कहीं होते तो एकएक टुकड़ा पाने के लिए घरघर झाँकना पड़ता। यहाँ बैठेबिठाए बढ़िया माल खा रहे हो। ज्यादा ही हुआ तो दिन में एकाध बार आनेजाने वालों पर गुर्रा लेते हो।''
कुत्ता हँसा–''तुम बेकार में क्रोध करते हो। अगर तुम भिखारी के घर पैदा हुए होते तो मुझसे और भी ईर्ष्या करते। जूठे पत्तल चाटने का मौका तक न मिल पाता। तुम यहीं रहो, खुश रहो, यही मेरी इच्छा है।''
''मैं तुम्हारी इच्छा से यहाँ रह रहा हूँ? हरामी कहीं के।'' साहब का बेटा भभक उठा।
कुत्ता फिर हँसा–''अपनेअपने संस्कार की बात है। मेरी देखभाल साहब और मेमसाहब दोनों करते हैं। मुझे कार में घुमाने ले जाते हैं। तुम्हारी देखभाल घर के नौकरचाकर करते हैं। उन्हीं के साथ तुम बोलतेबतियाते हो। उनकी संगति का प्रभाव तुम्हारे ऊपर ज़रूर पड़ेगा। जैसी संगति में रहोगे, वैसे संस्कार बनेंगे।''
साहब के बेटे का मुँह लटक गया। कुत्ता इस स्थिति को देखकर अफसर की तरह ठठाकर हँस पड़ा।

1 comment:

  1. wah ..afsar ka beta aur kutte ki tulna ....jaandaar post.
    is word verification ko hata den, bina matlab taklif hoti hai.

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