पथ के साथी

Saturday, November 24, 2007

ग्रहण

सुकेश साहनी

पापा राहुल कह रहा था कि आज तीन बजे---” विक्की ने बताना चाहा ।“चुपचाप पढ़ो!” उन्होंने अखबार से नजरें हटाए बिना कहा, “पढ़ाई के समय बातचीत बिल्कुल बंद !”“पापा कितने बज गए?” थोड़ी देर बाद विक्की ने पूछा।“तुम्हारा मन पढ़ाई में क्यों नहीं लगता? क्या ऊटपटांग सोचते रहते हो? मन लगाकर पढ़ाई करो, नहीं तो मुझसे पिट जाओगे।”विक्की ने नजरें पुस्तक में गड़ा दीं ।“पापा! अचानक इतना अँधेरा क्यों हों गया है?” विक्की ने ख़िड़की से बाहर ख़ुले आसमान को एकटक देख़ते हुए हैरानी से पूछा। अभी शाम भी नहीं हुई है और आसमान में बादल भी नहीं हैं! राहुल कह रहा था---“विक्की!!” वे गुस्से में बोले-ढेर सारा होमवर्क पड़ा है और तुम एक पाठ में ही अटके हो!”“पापा, बाहर इतना अँधेरा---” उसने कहना चाहा ।“अँधेरा लग रहा है तो मैं लाइट जलाए देता हूँ। पाँच मिनट में पाठ याद न हुआ, तो मैं तुम्हारे साथ सुलूक करता हूँ?”विक्की सहम गया। वह ज़ोर-ज़ोर से याद करने लगा, “सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाने से सूर्यग्रहण होता है---सूर्य और पृथ्वी के बीच---”

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर और एक परिपक्व रचना है। बच्चों से सम्बन्धित इस प्रकार की लघुकथाओं का स्वागत किया जाना चाहिए।

    ReplyDelete