पथ के साथी

Wednesday, March 6, 2024

1401-कविताएँ

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1-आत्मा के तल में



मेरे मन के मरुथल में
तुम
बादल का एक टुकड़ा
जब- जब दुख की आग में तपना पड़ा
एक पल में
कर दी रिमझिम बरसात
तुम्हारी हर एक बात
अमृत का घड़ा
मैं जी उठी
उत्साह हो गया
उठकर खड़ा
तुम
मेरी आत्मा के तल में
असल में
मेरे जीवन में तुम्हारा स्थान है
ईश्वर से बड़ा।

2- अर्थ

बेकार से खोखल बाँसों को
जब कृष्ण ने
अपने अधरों से छुआ
वो
उस पल से
बाँसुरी
हो गए,
सो गए
मेरे भाग को
मेरे मीत
तुमने ऐसे ही जगाया है
जिस पल
मुझे गले लगाया है
फैलाकर अपनी बाहों को
छूकर मेरी साँसों को
जो बीत रहा था
व्यर्थ,
मेरे उस जीवन को
तुमने दे दिया एक सुन्दर अर्थ।

3- आओ

बहुत ढूँढा
मगर
किसी किताब में
कहीं नहीं मिल पाया
वो लफ़्ज
कि जिसमें मैं पिरो देती
तुम्हारे अहसास के वो फूल
जिनसे हुई है
मेरी ज़िन्दगी सरसब्ज़
तुम जानना चाहो मुझसे कुछ
अपने बारे में
अगर
तो किसी पल आओ
मेरे सिरहाने बैठो
और टटोलो मेरी नब्ज़।

4- इबादत

मेरी आँखों के झरोखे में
तुम झाँककर देखो
ये जो बहुत ऊँची
मेरे ख्वाबों की गगनचुम्बी इमारत है
इसे भला कौन तोड़ सकेगा?
इसकी बुनियाद
तुम हो
कोई कहर
किसी पहर
टूट नहीं सकता
मेरे हाथों से
खुशी का दामन अब छूट नहीं सकता
मुझपर तुम्हारी इनायत है
तुम्हारे दम से
मेरी खंडहर पड़ी ज़िन्दगी में
आज फिर से
रौनक है,
दिल के दरीचे में
मैं
तुम्हारे सजदे में हूँ
तुम्हारा प्यार मेरी इबादत है।

5- रूह

तड़के उठते ही
आज मुझे
पापा की याद आ गई
मेरी आँखों में
अचानक नमी छा गई
काश! आज वो यहाँ होते...
ये सोचकर
मैंने
आसमान की ओर देखा
और सच मानो
तबसे
अब तक लगातार
बारिश हो रही है
बिजली भी कड़क रही है बार- बार
जैसे
बादल कह रहा हो
कि
दुनिया में इन्सान ही नहीं,
अपनों से बिछुड़कर
जन्नत में
रूह भी
हुड़ककर रोती है ज़ार- ज़ार।

-0-

Wednesday, February 14, 2024

1400-प्रेम -दिवस

 

डाॅ. सुरंगमा यादव

1


दर्द या प्रेम

जीवन में समाए

ढाई आखर।

2

स्पर्श तुम्हारा

रोम-रोम में फूटी

नेह की धारा।

3

भावों का मेला

कंपित हैं अधर

बीते न बेला।

4

तुम्हें देखके

खिल उठे जलज

नैन जल में।

5

मन धरा पे

तुमने बोये स्वप्न

सींच रही मैं।

6

जादू तुम्हारा

नयन स्वप्नशाला

बने हमारे।

7

मिलती हार

क्रोध से जीता कौन ?

किसी का प्यार।


8

सुनो ओ प्रिय !

सर्दी की धूप सम

तुम हो प्रिय।

Tuesday, February 6, 2024

1399

 

कृष्णा वर्मा

1

हमसे द्वेष करने वाले

हमसे दूरी तो रखते हैं

पर अपने दोस्तों के बीच

बात हमारी ही करते हैं। 

लाख बोले कोई 

मिश्री- सी ज़ुबान  

झलक ही जाती है 

स्वभाव की उग्रता।

3

करें जब शब्द 

लगाई बुझाई तो 

शक़ की तपिश से 

सूख जाते हैं  

प्यार के झरने। 

4

भीतर बाहर शून्य 

शून्य है चारों ओर 

अपने संग निपट अकेला

फिर मैं-मैं का शोर।  

5

औलाद से मिली ख़ुशियों की

ज़मानत होती है

माँ-बाप के चेहरे की मुस्कान।  

6

ज़ुल्म सहने और 

आँसू पीने में 

माहिर न होती औरत

तो 

ना यह चमन होता

ना अमन 

होतीं 

केवल वीरानियाँ।

7

औरत के चेहरे पर 

खिंची एक-एक लक़ीर 

एक-एक झुर्री

साक्षी होती है 

संचित अनुभवों की।

8

किसे चाहिए दोस्त आज

हँसने-हँसाने के लिए 

फ़ोन ही काफ़ी है 

दिल बहलाने के लिए 

सब रिश्ते नाते 

भुलाए बैठे हैं 

अभासी दुनिया को 

अपनाए बैठे हैं 

अंतिम सफ़र में 

चार कांधों का

जाने क्या हिसाब 

लगाए बैठे हैं।

9

पीहर आकर बेटी

माँ के कांधे पर

उडेलते हुए अपने दुख  

क्यों भूल जाती है 

बरसों से सह-सहकर

बूढ़ी हुई माँ की  

दुखों वाली गठरी 

हो जाएगी और भारी

कैसे ढो पाएँगे  

उसके क्षीण काँधे

दोहरे दुख। 

10

शिकारियों की शौर्यगाथाओं में 

लिखे जाने वाले 

हिरणों का इतिहास नहीं मैं

औरत हूँ- नश्तर की नोक

योगमाया अवतार संघार 

परिचित हैं मुझसे संसार   

जिसके एक पग की थाप 

बहुत है क्रांति के लिए

राधा मीरा सीता ही नहीं 

सत्यवान की 

सावित्री है औरत 

सबल सरल सहज 

निश्चल निर्मल 

प्रेम ही प्रेम

ईश्वर की अद्भुत 

सुंदरतम कृति 

औरत ही है

समस्त संसार का जीवन।

-0-

 

 

 

 

 

Saturday, February 3, 2024

1398

 

1-मेरे राम

डॉ . शिप्रा मिश्रा

 


हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

जन- मन के अनुरागी राघव

हर्ष- विषाद समभागी राघव

कमल नयन को निरख रही

मैं कितनी बड़भागी राघव

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

एक कुलश्रेष्ठ समग्र स्वयंवर में

वही श्रेष्ठ संपूर्ण आगत वर में

विदेह की भू जो पावन कर दी

सौभाग्यवती होऊँ उस कर में

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

सूर्यवंश के अविजित उद्धारक

प्रजा स्नेही उनके प्रतिपालक

हैं धीर- वीर वे धनुर्धर योद्धा

ज्ञान विवेकी स्थितप्रज्ञ संचालक

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

 

उन्हीं से जनम कर उन्हीं में समाना है

उन्हीं की शक्ति से अंधेरे को हराना है

हे राम! मुझमें हों समाहित समादृत

भाव पुष्प से उन तक पहुँचना है

 

हे अपर्णा! मुझे तो मेरे राम चाहिए

-0-

2-स्वाति बरनवाल

अकेलेपन से जूझते हुए

 


दुखी हृदय  ढूँढा  नहीं जाता

आसानी से मिल जाता है,

राह चलते,

सरेआम सड़कों पर!

जेब्रा क्रॉसिंग पर रुकी

गाड़ियों की तरह।

भीड़ से लदी हुई, सीटी बजाती हुई।

 

आषाढ़,

सावन,

भादो की बारिश में

भीगना तो है,

महज़ एक बहाना

अपने ऑंसुओं को छुपाने का!

 

अकेलेपन से जूझते हुए

वे चाहते हैं!

आशीर्वाद में मिलें एक जीवंत एकांत

जिसमें झेला जा सकें

लोगों का दंभ

पाई जा सके अकेलापन से निजात

और जिया, जा सके अपने हिस्से का एकांत।

 

••••••

-0-

 

2-बुद्धि की रोटी

 

खैर! छोड़ो!

ये तो पहले की बात थी

जब लोग बहाते थे पसीने,

जोतते थे खेत,

और चलाते थे हल!

 

उपजाते थे अनाज,

खाते थे मेहनत की दो रोटी!

मिटती थी भूख उनकी

और वो रहते थे सदा तृप्त।

 

अब की बात और है!

 

आज सुखी है वही

जो चलाता है दिमाग

साइकिल के पहियों से भी तेज़!

और खाता है

केवल और केवल

बुद्धि की रोटी!

 

जिससे तृप्त होते हैं

एक बुद्धिजीवी के तन-मन,

उनकी अतृप्त, असंख्य इच्छाऍं!

-०-

स्वाति बरनवाल (अध्ययन)

 ग्राम - कठिया मठिया, , जिला - प० चंपारण, बेतिया (बिहार)-- 845307

Sunday, January 21, 2024

1397

 1-शशि पाधा



 1- लौट आये श्री राम -दोहे

1

जन्म स्थली निज भवन में, हैं श्री  राम।

मुदित मन जग देखता, मूरत शुभ अभिराम ।।

2

दिव्य ज्योत झिलमिल जली, राम लला के धाम।

निशि -तारों ने लिख दिया, कण- कण पर श्री राम।।

3

स्वागत में मुखरित हुई, सरयू की जलधार

पावन नगरी राम की , सतरंगी शृंगार ।।

4

शंखनाद की गूँज में, गुंजित है इक नाम।

पहने अब हर भक्त ने, राम नाम परिधान।।

5

उत्सव मिथिला नगर में, सीता का घर द्वार।

रीझ-रीझ भिजवा दिया, मिष्टान्नों का भार।।

6

प्रभु मूरत है आँख में, अधरों पे है नाम।

अक्षर- अक्षर लिख दिया, मन पृष्ठों पे राम।।

7

आँखों में करुणा भरी, धनुष धरा है हाथ।

शौर्य औ संकल्प का, देखा अद्भुत साथ।।

8

वचनबद्ध दशरथ हुए, राम ग  वनवास।

धरती काँपी रुदन से, बरस गया आकाश।।

9

राम लखन सीता धरा, वनवासी का वेश।

प्राणशून्य दशरथ हुए, अँखियाँ थिर अनिमेष ।।  

10

माताओं की आँख से, अविरल झरता नीर।

कैसी थी दारुण  घड़ी, कौन बँधा धीर।।

11

पवन पुत्र के हिय बसे, विष्णु के अवतार।

पापी रावण का किया, लंका में संहार।।

12

जन रक्षा ही धर्म है, दयावान श्री राम।

 हितकारी हर कर्म है,जन सेवा निष्काम।।

13

 अभिनन्दन की शुभ घड़ी, जन जन गा गीत।

 दिशा दिशा में गूँजता,  मंगलमय संगीत।।

14

घर घर मंदिर सा सजा, द्वारे  वन्दनवार।

धरती से आकाश तक,लड़ियाँ पुष्पित हार।।

-0-वर्जिनिया, यूएसए

 -0-

-2-श्री राम आज घर लौट आ



          

 मेरी  अँखियों में राम

मेरे अधरों पे नाम

मेरे रोम- रोम राम समा

राम लला आज घर लौट आ

 

छवि देखते यूँ युग- युग जी लिया

घूँट-घूँट राम-नाम रस पी लिया

मेरे ओढ़नी पे राम

भाल बिंदिया में नाम

कोई और न  मोरे  मन भा

 

इत-उत मेरे राम ही  खड़े हैं

मणि-मोतियों से मन में जड़े हैं

 बीन तार गा राम

सुर ताल गा राम

मन झूम -झूम राम गीत गा

 

धूप-दीप से थाल मैं सजाऊँगी

फूल पंखुड़ी के हार बनाऊँगी

जहाँ लिखूँ राम-नाम

वहीं मेरा चार धाम

मोह- माया मुझे अब न लुभा

-0-

2- डॉ. सुरंगमा यादव

-राम आहैं

 

स्वाति बरनवाल

श्री राम भवन में पधारे

 लो जागे भाग्य हमारे

 मन मुदित हुए हैं सारे

 आनंदघन चहुँ दिसि छाए हैं

 राम आए हैं राम आए हैं

 सज गई अयोध्या सारी

 झूमें- नाचें नर- नारी

 अँखियाँ जाएँ बलिहारी

 श्री राम ने दरश दिखाए हैं

 राम आए हैं, राम आए हैं

 झुक रही सुमन की डाली

 चलती है हवा निराली

 त्रेता-सी जगी दिवाली

 मन- देहरी दीप सजाए हैं

 राम आ हैं राम आए हैं

 सदियों आस लगा

 शुभ बेला तब ये आई

अपलक है दृष्टि लगा

 प्रभु बाल रूप दिखलाए हैं

 राम आए हैं राम आए हैं।

-0-

3- गुंजन अग्रवाल

राम रमैया आए हैं

 

मान्या शर्मा

राम रमैया राम रमैया राम रमैया आए हैं ।

अवध सजी है जैसे कोई दुल्हन ने शृंगार किया 

सरयू की पावन धारा ने श्री हरि का सत्कार किया । 

संग गौरा के करते शंकर ताता थैया आए हैं । 

राम रमैया...............

 

ढोल नगाड़ों की धुन पर नर नारी नर्तन करते हैं । 

चौखट तोरण बांधके दहली दहली सतिया  धरते हैं ।

बृंदावन से राधा के संग  रास रचैया आए हैं । 

राम रमैया.................

 

मिथिला के पाहुन का मुखड़ा देख धरा इतराई है ।

पवन ने  ‘पीली सरसों फूली इधर उधर छितराई है ।

मेरी जीवन नैया के हाँ आज खिवैया आए हैं ।

राम रमैया....................

२६०, ग्राउंड फ्लोर

अशोका एनक्लेव मैन 

सेक्टर ३५ फरीदाबाद (हरियाणा)

मोब 9911770367