पथ के साथी

Sunday, March 30, 2025

1457

 

गुंजन अग्रवाल

 




माता शेराँवाली

द्वार पड़े तेरे

भर दो झोली खाली।

 

माँ वेग सहारा दो

भँवर फँसी कश्ती

अब मात किनारा दो

जागो मैया काली।

आस लगी तुमसे

भर दो झोली खाली।1

 

सुन लो माँ जगदम्बे

राह तके नैना

दर्शन दो माँ अम्बे।

हे अष्ट भुजा वाली

सिंह सवारिन माँ

भर दो झोली खाली।2

 

तुम भाग्य विधाता हो

करुणा करती माँ

सब सुख की दाता हो

तुम हो लाटा वाली।

भूल नही जाना 

भर दो झोली खाली।3

 

घेरे है अँधियारा 

मन मंदिर में आ

कर दो माँ उजियारा 

भक्तों की रखवाली

तुम मैया ज्वाला

भर दो झोली खाली।4

 

'अनहद' तेरी वाणी

ज्ञान, दया, दर्शन

तू ही वीणा पाणी 

जय माँ खप्परवाली

घर मेरे आओ 

भर दो झोली खाली।5

Saturday, March 15, 2025

1456-करूँ क्या होली है

 

करूँ क्या होली है/ शशि पाधा

 


सुनो रे वन के पंछी मोर

सखा! न आज मचाना शोर

चुराने आई तेरे रंग

करूँ क्याहोली है

 

रंगरेज की हुई मनाही

सब ढूँढे हाट-बाज़ार

इन्द्रधनु का दूर बसेरा

 करे नखरे लाख हजार  

छिड़ी है तितली से भी जंग

करूँ क्या होली है |

 

अम्बर बदरा रंग उढ़ेले

बूँदें बरसें सावन की

होरी चैती अधर सजें फिर

सुध-बुध खो दूँ तन-मन की

 ज़रा- सी चख ली मैंने भंग

  करूँ क्याहोली है |

 

चुनरी टाँकूँ मोर पाँखुरी

माथे बिंदिया चन्दन की

चन्द्रकला का हार पिरो लूँ

रुनझुन छेडूँ कंगन की  

 बजाऊँ जी भर ढोल मृदंग

 सुनो जीहोली है |

 

-0-

Thursday, March 13, 2025

1455

 

प्यार से अधिकार से/ स्वाति बरनवाल

 


तुम्हें बुला रहे कब से

प्यार से, अधिकार से!

 

तुम शहर के

मैं गाँव की

ये दिन फाग के

सज रहे रंग और राग से!

 

ख़्यालात रहे प्यार के

नशा छा होली से!

 

दही-बड़े उरद के

बर्फी सजी केसर से

स्वाद रहा इलायची का

असर रहा भाँग से!

 

घाघरा रहा रेशम का

चुन्नी टँकी मोतियों से!

 

चेहरा रहा लाल

मलती रही गुलाल

बंसी रही बाँस की

बजती रही साज से!

 

चलो सींचे जीवन सुंदर

प्यार से अधिकार से!

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Wednesday, March 12, 2025

1454

 

कवित्त

1-गुंजन अग्रवाल अनहद


1

श्याम रंग चहूँ ओर, भीग गयो पोर- पोर,

अंग- अंग राधिका के, दामिनी मचल उठी।

प्रेम की पिपासा गाज भूल ग लोक-लाज

अधरों पे राधिका के रागिनी मचल उठी।

मन में मलंग उठे, हिय में तरंग उठे,

छेड़ गयो चितचोर कामिनी मचल उठी।

सारा रंग, देह सारी, मार गयो पिचकारी,

अब के फगुनवा में ग्वालिनी मचल उठी।

2

खेलनको आये होरी, करें श्याम बरजोरी

भंग की तरंग संग, करत धमाल हैं।

बलखाती चलें गोरी, हाथ लिये हैं कमोरी।

संग में किशोरी आईं, फेंकत गुलाल हैं।

मार दई पिचकारी, भीगी देह सुकुमारी,

लाज से लजाय गई , लाल हुए गाल हैं।

अंग- अंग में उमंग , मन में उठी तरंग,

श्याम रँग रंगी मन, बसे नंदलाल हैं।

3

बरसाने की मैं छोरी नाजुक कलाई मोरी

करेगो जो बरजोरी हल्ला मैं मचाय दूँ।

नैनन सों वार कर बतियाँहजार कर,

मुसकाय उकसाय झट से लजाय दूँ।

छेड़ेगो जो अब मोय, रंग में डुबोय तोय,

 साँची-साँची बोलती हूँ गोकुल पठाय दूँ।

हाथन में हाथ डार, रगड़े जो गाल लाल,

करैगो जो जोरदारी, रंग में डुबाय दूँ।

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गुंजन अग्रवाल अनहद’, फरीदाबाद 

सम्पर्क. 9911770367

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आई होली वर्ष पच्चीस की

दिनेश चन्द्र पाण्डेय


1.

केसर कली की पिचकारी

पात-पात की देह सँवारी

रवि- किरणों से रंग चुराकर

प्योली ने अपनी छटा बिखेरी

होली आई अपने रंग में

फिजा में घुले नशीले गीत

समय से पहले खिले बुराँ

वादियाँ हुईं युवा व  सुरभित

गुलाल, अबीर, हरा, पीला

सब निकले बाहर बाग-वनों से

खुशरंग चुराकर फूलों से

खुद पर छिड़के इन्सानों नें

2.

जितने रंग थे दुनिया भर में

सब व्हाट्सएप पर छाए हैं.

भले ही घर में तंगहाल हो

फोन पे छटा बिखरा है.

हँसते चेहरे फेसबुक पे

फूल कली मुसका हैं

सूने पड़े गलियों के पैसेज

भटके फिरें होली के मैसेज

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Saturday, March 8, 2025

1453-महिला दिवस

मुक्तक

डॉ. सुरंगमा यादव

 


1.

मिले तूफान राहों में, हमें पर रोक ना पाए 

कभी इरादों की स्याही, समन्दर टोक ना पाए

जो जुनूँ का क दरिया हमारे दिल में बहता है

लाख सूरज तपे लेकिन, से वह सोख ना पाए॥

2.

कोई मौसम, कोई रस्ता, हमें बस चलते जाना है  

दिखाए व़क्त ग़र तेवर, नहीं इक आँसू बहाना है

पसारे भुजाएँ कब रास्ते ये हम सबको बुलाते हैं

अगर पाना है मंज़िल तो क़दम ख़ुद तुमको बढ़ाना है॥

3.

सजे दीपक के संग ज्योति त दीपक सुहाता है

हो जब अक्षत-संग रोली तभी टीका भी भाता है।

है नारी प्यार की मूरत, बिन उसके कहाँ घर है

बिन मूरत के मंदिर भी कहाँ मंदिर कहाता है॥

4.

है नारी- मन तपोवन-सा, प्रेम-करुणा लुटाता है 

जो करता मान नारी का, वही सम्मान पाता है।

बिछाकर राह में काँटे क्यों परखते बल तुम उसका -

है वही काली, वहीं लक्ष्मी, वही बुद्धि प्रदाता है॥

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Thursday, March 6, 2025

1452

 डॉ. कनक लता मिश्रा

1-  सरस्वती वंदना

 


माँ सरस्वती,  माँ शारदे,  माँ शारदे, माँ सरस्वती 

तू ज्ञान का वरदान दे, माँ ज्ञानदा माँ भारती

माँ सरस्वती…

धुन तेरी वीणा की बजे, हो हृदय में तेरा ही वास,  

स्वर तेरे गूंजे मेरे स्वर, जीवन बने तुझसे उजास 

करूँ वंदना, करूँ प्रार्थना, अभ्यर्थना करूँ स्तुति 

माँ सरस्वती..

 

मिट जाय सब मन के विकार जो हो श्वास में तेरा निवास

अन्तःकरण हो दीप्तिमान कर ज्ञान ज्योति का प्रकाश 

सब कुछ मेरा तेरी सर्जना गाउ तेरी ही अनुश्रुति 

माँ सरस्वती…. 

 

हो आत्म बोध हो मन प्रबल चैतन्य मन में तेरा वास 

आनंद हो या वेदना,  अवलंब तू तेरी ही आस

दृष्टि तू मेरी दिव्य कर माँ दूर कर सब विकृति 

माँ सरस्वती…

-0-

 

2-  मन का शृंगार

 

कैसे करूँ मन का शृंगार 

क्षण क्षण देखूँ रूप निहार,  

अधीर, अधूरा, आरव है,  

पल प्रतिपल द्वंद्व है इसमें,

स्वयं से जीते,  कभी माने हार,  

कैसे करूँ मन का ..

 

कितनी इच्छाएँ,  कितनी आशाएँ  

कभी हो दृढ़, तो कभी हो विचलित,  

कभी तो लगे सब ही निराधार,  

कैसे करूँ मन का …

 

कभी हो उदास,  कभी हो निराश,  

कभी तो बहे प्रेम रसधार,  

कभी हो लोभ,  कभी हो क्षोभ,  

कभी त्याग की उठे फुहार,  

कौन रूप सजाऊँ इसका,  

हो ना जिसमें कोई विकार,  

कैसे करूँ मन का …

 

मन का अपना ही रंगमंच है,  

धारण करे रूप अपार,  

कभी हर्ष का कोलाहल है,  

कभी विषाद की निर्ममता 

भूमिकाएँ हैं अनेक

अनेक रूप में करूँ विचार,  

कैसे करूँ मन का शृंगार 

कैसे करूँ मन का…

-0-St.Joseph’s College for Women, Civil Lines, Gorakhpur

 

Friday, February 28, 2025

1451

 रुत वासन्ती आती है...

             प्रणति ठाकुर

 


आम्र मंजरी की मखमल सी राहों पर पग धर- धरकर 

शुभ्र, सुवासित अनिल श्वास में,पोर - पोर में भर -भरकर

ये अवनी सुखदा सज-धज  जब राग प्रेम के गाती है 

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

 

जब मदन बाण से दग्ध हृदय ले कली- कली खिल जाती है

जब पीत रंग का वसन पहन ये धरा मुदित मुस्काती है 

जब अंतर का अनुताप सहन कर कोकिल गीत सुनाती है

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

 


जब पथिक हृदय का प्रेम प्रगल्भित हो  पलाश का फूल बने 

जब अलि कुल का मादक गुंजन गोरी के मन का शूल बने

जब पनघट पर परछाई को लखकर मुग्धा शरमाती है

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

 

जब साँझ-भोर के मिलन डोर को थामे रात सुहानी- सी

जब टीस हृदय में उठती हो उस निश्छल प्रेम पुराने की 

जब चारु अलक  की मदिर याद नागन बनकर डस जाती है

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

 

गोरी के मन की पीड़ बढ़ाती विरह - व्यथा जब मुस्काए

निज श्वासों के ही मधुर गंध विरहन मन को जब बहलाए

अपने पायल की छुन -छुन जब पलकों की नींद उड़ाती है 

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

 

साँसों में मलय बयार लिए, अधरों पर मधुर पुकार लिये

अनुरक्त नयन के पुष्पों से सज्जित पावन उपहार लिये 

परदेसी की द्विविधा चलकर जब विरहन  द्वारे आती है

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

तब शिशिर शिविर में हलचल करती रुत वासन्ती आती है।

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